Aghajani/یادداشت: تفاوت بین نسخهها
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− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|1|﴿١﴾}}<p></P> |
− | به نام خدا که رحمتش بی اندازه است و مهربانی اش همیشگی. | + | به نام خدا که رحمتش بی اندازه است و مهربانی اش همیشگی. ق، سوگند به قرآن مجید [که محمّد، فرستاده ماست و وقوع قیامت حق است.] (۱)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|2|﴿٢﴾}}<p></P> |
− | + | [کفر پیشگان نه تنها ایمان نیاوردند] بلکه از اینکه بیم دهنده ای از خودشان به سوی آنان آمد تعجب کردند و در نتیجه کافران گفتند: این چیزی عجیب است. (۲)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|3|﴿٣﴾}}<p></P> |
− | + | آیا هنگامی که مردیم و خاک شدیم [زنده می شویم و به حیات دوباره باز می گردیم؟] این بازگشتی دور [از عقل] است. (۳)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|4|﴿٤﴾}}<p></P> |
− | + | بی تردید ما آنچه را که زمین از اجسادشان می کاهد، می دانیم و نزد ما کتابی ضبط کننده [همه امور چون لوح محفوظ] است. (۴)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|5|﴿٥﴾}}<p></P> |
− | + | [اینان نه اینکه زنده شدن پس از مرگ را باور نکردند] بلکه حق را هم هنگامی که به سویشان آمد، تکذیب کردند پس در حالتی آشفته و سردرگم اند. (۵)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|6|﴿٦﴾}}<p></P> |
− | و | + | آیا با تأمل به آسمان بالای سرشان ننگریستند که چگونه آن را بنا کرده و بیاراستیم و آن را هیچ شکاف [و ناموزونی] نیست؟ (۶)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|7|﴿٧﴾}}<p></P> |
− | و | + | و زمین را گستردیم و کوه هایی استوار در آن افکندیم و در آن از هر نوع گیاه خوش منظر و دل انگیزی رویاندیم، (۷)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|8|﴿٨﴾}}<p></P> |
− | تا | + | تا برای هر بنده ای که [با اندیشیدن در نظام هستی] به سوی خدا باز می گردد، مایه بینایی و یادآوری باشد؛ (۸)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|9|﴿٩﴾}}<p></P> |
− | و | + | و از آسمان آبی بسیار پربرکت و سودمند نازل کردیم، پس به وسیله آن باغ ها و دانه های دروکردنی را رویاندیم. (۹)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|10|﴿١٠﴾}}<p></P> |
− | و | + | و [نیز] درختان بلندقامت خرما را که خوشه های متراکم و روی هم چیده دارند [رویاندیم.] (۱۰)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|11|﴿١١﴾}}<p></P> |
− | + | برای آنکه رزق و روزی بندگان باشد، و نیز به وسیله آن آب سرزمین مرده را زنده کردیم؛ و بیرون آمدنشان [پس از مرگ از خاک گور برای ورود به قیامت] این گونه است. (۱۱)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|12|﴿١٢﴾}}<p></P> |
− | و | + | پیش از اینان [که تو را تکذیب می کنند] قوم نوح و اصحاب رس و [قوم] ثمود [پیامبرانشان] را تکذیب کردند. (۱۲)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|13|﴿١٣﴾}}<p></P> |
− | + | و نیز قوم عاد و فرعون و برادران لوط، (۱۳)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|14|﴿١٤﴾}}<p></P> |
− | + | و اصحاب ایکه و قوم تُبّع همگی پیامبران را تکذیب کردند، پس تهدیدم [به نزول عذاب] بر آنان محقق و ثابت شد. (۱۴)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|15|﴿١٥﴾}}<p></P> |
− | و | + | آیا ما از آفرینش نخستین عاجز و درمانده شدیم [تا از دوباره آفریدن عاجز و درمانده شویم؟ چنین نیست] بلکه آنان [با این همه دلایل روشن و استوار] باز در آفرینش جدید در تردیدند. (۱۵)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه | + | {{قرآن/صفحه جزء| ۵۱۸}} |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|16|﴿١٦﴾}}<p></P> | |
− | + | همانا انسان را آفریدیم و همواره آنچه را که باطنش [نسبت به معاد و دیگر حقایق] به او وسوسه می کند، می دانیم، و ما به او از رگ گردن نزدیک تریم. (۱۶)<p></P> | |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|17|﴿١٧﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | [یاد کن] دو فرشته ای را که همواره از ناحیه خیر و از ناحیه شر، ملازم انسان هستند و همه اعمالش را دریافت کرده و ضبط می کنند. (۱۷)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|18|﴿١٨﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | هیچ سخنی را به زبان نمی گوید جز اینکه نزد آن [برای نوشتن و حفظش] نگهبانی آماده است؛ (۱۸)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|19|﴿١٩﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | و سکرات و بیهوشی مرگ، حق را [که همه واقعیات جهان پس از مرگ است] می آورد [و به محتضر می گویند:] این همان چیزی است که از آن می گریختی؛ (۱۹)<p></P> |
− | [ | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|20|﴿٢٠﴾}}<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | و در صور می دمند؛ آن است روز [تحقق و ظهور] وعده های تهدیدآمیز و وحشتناک. (۲۰)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|21|﴿٢١﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | هر کسی در آن روز می آید در حالی که سوق دهنده ای و شاهدی با اوست، [که سوق دهنده او را به محشر می راند و شاهد بر اعمالش گواهی می دهد.] (۲۱)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|22|﴿٢٢﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | [به او می گویند:] تو از این روز بزرگ در بی خبری و غفلت بودی، پس ما پرده بی خبری را از دیده [بصیرت] ات کنار زدیم در نتیجه دیده ات امروز بسیار تیزبین است. (۲۲)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|23|﴿٢٣﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | و [فرشته] همراهش می گوید: این است نامه اعمالش که همراه من آماده است. (۲۳)<p></P> |
− | و | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|24|﴿٢٤﴾}}<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | [به دو فرشته نگهبان و حافظ اعمال فرمان می دهند] شما دو نفر هر کافر سرسخت و معاندی را در دوزخ اندازید. (۲۴)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|25|﴿٢٥﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | [همان که به شدت] مانع خیر و تجاوزکار [از حدود خدا] و تردید کننده در حقایق [و تردید انداز در دل های مردم بود.] (۲۵)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|26|﴿٢٦﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | که با خدا معبودی دیگر قرار داد، پس او را در عذاب سخت اندازید، (۲۶)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|27|﴿٢٧﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | همنشینش [از میان شیطان ها] می گوید: پروردگارا! من او را به سرکشی و طغیان وا نداشتم، او خودش [به میل خود] در گمراهی دور و درازی بود. …. (۲۷)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|28|﴿٢٨﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | [خدا] می گوید: در پیشگاه من با یکدیگر ستیزه مکنید، بی تردید من تهدید [به عذاب] را پیش از این [از طریق وحی و پیامبران] به شما اعلام کرده بودم. (۲۸)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|29|﴿٢٩﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | نزد من فرمان [تهدیدآمیز به اینکه هر کس با حال کفر و شرک وارد آخرت شود حتماً دوزخی است] تغییر نمی یابد و من نسبت به بندگان ستمکار نیستم. (۲۹)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|30|﴿٣٠﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | [یاد کن] روزی را که به دوزخ می گوییم: آیا پر شدی؟ می گوید: آیا زیادتر از این هم هست؟ (۳۰)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|31|﴿٣١﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | و بهشت را به پرهیزکاران نزدیک می کنند بی آنکه فاصله ای از آنان داشته باشد. (۳۱)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|32|﴿٣٢﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | [به آنان می گویند:] این همان است که [در دنیا] وعده داده می شدید [این جایگاه رفیع] برای هر کسی است که [در دنیا به سوی خدا] باز می گشته [و] حافظ و نگهبان [عهد، پیمان الهی و حقوق خدا و مردم] بوده است. (۳۲)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|33|﴿٣٣﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | همان کسی که در نهان از [خدای] رحمان می ترسید و دلی رجوع کننده [به سوی خدا] آورده است؛ (۳۳)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|34|﴿٣٤﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | به سلامت در آن وارد شوید، امروز روز جاودانگی است (۳۴)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|35|﴿٣٥﴾}}<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | در آنجا هرچه بخواهند برای آنان فراهم است، و نزد ما [نعمت های] بیشتری است. (۳۵)<p></P> |
− | + | {{قرآن/صفحه جزء| ۵۱۹}} | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|36|﴿٣٦﴾}}<p></P> |
− | و | + | و چه بسیار اقوامی را که پیش از آنان هلاک کردیم که از آنان نیرومندتر بودند، و [با نیرویشان] به سرزمین ها رفتند [و آنها را فتح کردند]، آیا توانستند [از عذاب و هلاکت] گریزگاهی بیابند؟ (۳۶)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|37|﴿٣٧﴾}}<p></P> |
− | + | بی تردید در سرگذشت پیشینیان مایه پند و عبرتی است برای کسی که نیروی تعقّل دارد، یا با تأمل و دقت [به سرگذشت ها] گوش فرا می دهد در حالی که حاضر به شنیدن و فراگیری شنیده های خود باشد. (۳۷)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|38|﴿٣٨﴾}}<p></P> |
− | + | همانا ما آسمان ها و زمین و آنچه را میان آنهاست در شش روز آفریدیم، و هیچ رنج و درماندگی به ما نرسید. (۳۸)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|39|﴿٣٩﴾}}<p></P> |
− | پس | + | پس [بر آزار مشرکان] شکیبا باش، و پیش از طلوع خورشید و پیش از غروب آن پروردگارت را همراه با سپاس و ستایش تسبیح گوی، (۳۹)<p></P> |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|40|﴿٤٠﴾}}<p></P> |
− | + | و در پاره ای از شب و نیز پس از سجده ها خدا را تسبیح گوی، (۴۰)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|41|﴿٤١﴾}}<p></P> |
− | + | و گوش فرا ده روزی که ندا دهنده از جایی نزدیک ندا می دهد. (۴۱)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|42|﴿٤٢﴾}}<p></P> |
− | + | روزی که [همگان] صیحه و فریاد را به حق و درستی می شنوند [و] آن روز، روز بیرون آمدن [از قبرها] ست. (۴۲)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|43|﴿٤٣﴾}}<p></P> |
− | + | بی تردید ماییم که زنده می کنیم و می میرانیم، و بازگشت به سوی ماست. (۴۳)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|44|﴿٤٤﴾}}<p></P> |
− | + | روزی که زمین از [روی اجساد] آنان در حالی که [از قبرها بیرون آمده] شتابان [به سوی ندا کننده خود بروند] بشکافد؛ این گردآوردنشان از گورها [وحاضر کردنشان در قیامت] بر ما آسان است. (۴۴)<p></P> | |
− | {{قرآن/صفحه و متن| | + | {{قرآن/صفحه و متن|50|45|﴿٤٥﴾}}<p></P> |
− | و | + | ما به آنچه [دشمنان لجوج بر ضد حقایق] می گویند، داناتریم و تو را بر آنان تسلطی نیست [که به قبول حقایق وادارشان کنی]؛ پس به وسیله قرآن کسانی را که از تهدید من می ترسند، بیم ده. (۴۵)<p></P> |
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نسخهٔ ۱۹ ژوئیهٔ ۲۰۲۰، ساعت ۰۹:۵۴
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ ق ۚ وَالْقُرْآنِ الْمَجِيدِ
به نام خدا که رحمتش بی اندازه است و مهربانی اش همیشگی. ق، سوگند به قرآن مجید [که محمّد، فرستاده ماست و وقوع قیامت حق است.] (۱)
بَلْ عَجِبُوا أَنْ جَاءَهُمْ مُنْذِرٌ مِنْهُمْ فَقَالَ الْكَافِرُونَ هَٰذَا شَيْءٌ عَجِيبٌ
[کفر پیشگان نه تنها ایمان نیاوردند] بلکه از اینکه بیم دهنده ای از خودشان به سوی آنان آمد تعجب کردند و در نتیجه کافران گفتند: این چیزی عجیب است. (۲)
أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا ۖ ذَٰلِكَ رَجْعٌ بَعِيدٌ
آیا هنگامی که مردیم و خاک شدیم [زنده می شویم و به حیات دوباره باز می گردیم؟] این بازگشتی دور [از عقل] است. (۳)
قَدْ عَلِمْنَا مَا تَنْقُصُ الْأَرْضُ مِنْهُمْ ۖ وَعِنْدَنَا كِتَابٌ حَفِيظٌ
بی تردید ما آنچه را که زمین از اجسادشان می کاهد، می دانیم و نزد ما کتابی ضبط کننده [همه امور چون لوح محفوظ] است. (۴)
بَلْ كَذَّبُوا بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ فَهُمْ فِي أَمْرٍ مَرِيجٍ
[اینان نه اینکه زنده شدن پس از مرگ را باور نکردند] بلکه حق را هم هنگامی که به سویشان آمد، تکذیب کردند پس در حالتی آشفته و سردرگم اند. (۵)
أَفَلَمْ يَنْظُرُوا إِلَى السَّمَاءِ فَوْقَهُمْ كَيْفَ بَنَيْنَاهَا وَزَيَّنَّاهَا وَمَا لَهَا مِنْ فُرُوجٍ
آیا با تأمل به آسمان بالای سرشان ننگریستند که چگونه آن را بنا کرده و بیاراستیم و آن را هیچ شکاف [و ناموزونی] نیست؟ (۶)
وَالْأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنْبَتْنَا فِيهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ بَهِيجٍ
و زمین را گستردیم و کوه هایی استوار در آن افکندیم و در آن از هر نوع گیاه خوش منظر و دل انگیزی رویاندیم، (۷)
تَبْصِرَةً وَذِكْرَىٰ لِكُلِّ عَبْدٍ مُنِيبٍ
تا برای هر بنده ای که [با اندیشیدن در نظام هستی] به سوی خدا باز می گردد، مایه بینایی و یادآوری باشد؛ (۸)
وَنَزَّلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً مُبَارَكًا فَأَنْبَتْنَا بِهِ جَنَّاتٍ وَحَبَّ الْحَصِيدِ
و از آسمان آبی بسیار پربرکت و سودمند نازل کردیم، پس به وسیله آن باغ ها و دانه های دروکردنی را رویاندیم. (۹)
وَالنَّخْلَ بَاسِقَاتٍ لَهَا طَلْعٌ نَضِيدٌ
و [نیز] درختان بلندقامت خرما را که خوشه های متراکم و روی هم چیده دارند [رویاندیم.] (۱۰)
رِزْقًا لِلْعِبَادِ ۖ وَأَحْيَيْنَا بِهِ بَلْدَةً مَيْتًا ۚ كَذَٰلِكَ الْخُرُوجُ
برای آنکه رزق و روزی بندگان باشد، و نیز به وسیله آن آب سرزمین مرده را زنده کردیم؛ و بیرون آمدنشان [پس از مرگ از خاک گور برای ورود به قیامت] این گونه است. (۱۱)
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَأَصْحَابُ الرَّسِّ وَثَمُودُ
پیش از اینان [که تو را تکذیب می کنند] قوم نوح و اصحاب رس و [قوم] ثمود [پیامبرانشان] را تکذیب کردند. (۱۲)
وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ وَإِخْوَانُ لُوطٍ
و نیز قوم عاد و فرعون و برادران لوط، (۱۳)
وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ وَقَوْمُ تُبَّعٍ ۚ كُلٌّ كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ وَعِيدِ
و اصحاب ایکه و قوم تُبّع همگی پیامبران را تکذیب کردند، پس تهدیدم [به نزول عذاب] بر آنان محقق و ثابت شد. (۱۴)
أَفَعَيِينَا بِالْخَلْقِ الْأَوَّلِ ۚ بَلْ هُمْ فِي لَبْسٍ مِنْ خَلْقٍ جَدِيدٍ
آیا ما از آفرینش نخستین عاجز و درمانده شدیم [تا از دوباره آفریدن عاجز و درمانده شویم؟ چنین نیست] بلکه آنان [با این همه دلایل روشن و استوار] باز در آفرینش جدید در تردیدند. (۱۵)
وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ وَنَعْلَمُ مَا تُوَسْوِسُ بِهِ نَفْسُهُ ۖ وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْ حَبْلِ الْوَرِيدِ
همانا انسان را آفریدیم و همواره آنچه را که باطنش [نسبت به معاد و دیگر حقایق] به او وسوسه می کند، می دانیم، و ما به او از رگ گردن نزدیک تریم. (۱۶)
إِذْ يَتَلَقَّى الْمُتَلَقِّيَانِ عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ قَعِيدٌ
[یاد کن] دو فرشته ای را که همواره از ناحیه خیر و از ناحیه شر، ملازم انسان هستند و همه اعمالش را دریافت کرده و ضبط می کنند. (۱۷)
مَا يَلْفِظُ مِنْ قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ
هیچ سخنی را به زبان نمی گوید جز اینکه نزد آن [برای نوشتن و حفظش] نگهبانی آماده است؛ (۱۸)
وَجَاءَتْ سَكْرَةُ الْمَوْتِ بِالْحَقِّ ۖ ذَٰلِكَ مَا كُنْتَ مِنْهُ تَحِيدُ
و سکرات و بیهوشی مرگ، حق را [که همه واقعیات جهان پس از مرگ است] می آورد [و به محتضر می گویند:] این همان چیزی است که از آن می گریختی؛ (۱۹)
وَنُفِخَ فِي الصُّورِ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْوَعِيدِ
و در صور می دمند؛ آن است روز [تحقق و ظهور] وعده های تهدیدآمیز و وحشتناک. (۲۰)
وَجَاءَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَعَهَا سَائِقٌ وَشَهِيدٌ
هر کسی در آن روز می آید در حالی که سوق دهنده ای و شاهدی با اوست، [که سوق دهنده او را به محشر می راند و شاهد بر اعمالش گواهی می دهد.] (۲۱)
لَقَدْ كُنْتَ فِي غَفْلَةٍ مِنْ هَٰذَا فَكَشَفْنَا عَنْكَ غِطَاءَكَ فَبَصَرُكَ الْيَوْمَ حَدِيدٌ
[به او می گویند:] تو از این روز بزرگ در بی خبری و غفلت بودی، پس ما پرده بی خبری را از دیده [بصیرت] ات کنار زدیم در نتیجه دیده ات امروز بسیار تیزبین است. (۲۲)
وَقَالَ قَرِينُهُ هَٰذَا مَا لَدَيَّ عَتِيدٌ
و [فرشته] همراهش می گوید: این است نامه اعمالش که همراه من آماده است. (۲۳)
أَلْقِيَا فِي جَهَنَّمَ كُلَّ كَفَّارٍ عَنِيدٍ
[به دو فرشته نگهبان و حافظ اعمال فرمان می دهند] شما دو نفر هر کافر سرسخت و معاندی را در دوزخ اندازید. (۲۴)
مَنَّاعٍ لِلْخَيْرِ مُعْتَدٍ مُرِيبٍ
[همان که به شدت] مانع خیر و تجاوزکار [از حدود خدا] و تردید کننده در حقایق [و تردید انداز در دل های مردم بود.] (۲۵)
الَّذِي جَعَلَ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ فَأَلْقِيَاهُ فِي الْعَذَابِ الشَّدِيدِ
که با خدا معبودی دیگر قرار داد، پس او را در عذاب سخت اندازید، (۲۶)
قَالَ قَرِينُهُ رَبَّنَا مَا أَطْغَيْتُهُ وَلَٰكِنْ كَانَ فِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ
همنشینش [از میان شیطان ها] می گوید: پروردگارا! من او را به سرکشی و طغیان وا نداشتم، او خودش [به میل خود] در گمراهی دور و درازی بود. …. (۲۷)
قَالَ لَا تَخْتَصِمُوا لَدَيَّ وَقَدْ قَدَّمْتُ إِلَيْكُمْ بِالْوَعِيدِ
[خدا] می گوید: در پیشگاه من با یکدیگر ستیزه مکنید، بی تردید من تهدید [به عذاب] را پیش از این [از طریق وحی و پیامبران] به شما اعلام کرده بودم. (۲۸)
مَا يُبَدَّلُ الْقَوْلُ لَدَيَّ وَمَا أَنَا بِظَلَّامٍ لِلْعَبِيدِ
نزد من فرمان [تهدیدآمیز به اینکه هر کس با حال کفر و شرک وارد آخرت شود حتماً دوزخی است] تغییر نمی یابد و من نسبت به بندگان ستمکار نیستم. (۲۹)
يَوْمَ نَقُولُ لِجَهَنَّمَ هَلِ امْتَلَأْتِ وَتَقُولُ هَلْ مِنْ مَزِيدٍ
[یاد کن] روزی را که به دوزخ می گوییم: آیا پر شدی؟ می گوید: آیا زیادتر از این هم هست؟ (۳۰)
وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ غَيْرَ بَعِيدٍ
و بهشت را به پرهیزکاران نزدیک می کنند بی آنکه فاصله ای از آنان داشته باشد. (۳۱)
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِكُلِّ أَوَّابٍ حَفِيظٍ
[به آنان می گویند:] این همان است که [در دنیا] وعده داده می شدید [این جایگاه رفیع] برای هر کسی است که [در دنیا به سوی خدا] باز می گشته [و] حافظ و نگهبان [عهد، پیمان الهی و حقوق خدا و مردم] بوده است. (۳۲)
مَنْ خَشِيَ الرَّحْمَٰنَ بِالْغَيْبِ وَجَاءَ بِقَلْبٍ مُنِيبٍ
همان کسی که در نهان از [خدای] رحمان می ترسید و دلی رجوع کننده [به سوی خدا] آورده است؛ (۳۳)
ادْخُلُوهَا بِسَلَامٍ ۖ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْخُلُودِ
به سلامت در آن وارد شوید، امروز روز جاودانگی است (۳۴)
لَهُمْ مَا يَشَاءُونَ فِيهَا وَلَدَيْنَا مَزِيدٌ
در آنجا هرچه بخواهند برای آنان فراهم است، و نزد ما [نعمت های] بیشتری است. (۳۵)
وَكَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِنْ قَرْنٍ هُمْ أَشَدُّ مِنْهُمْ بَطْشًا فَنَقَّبُوا فِي الْبِلَادِ هَلْ مِنْ مَحِيصٍ
و چه بسیار اقوامی را که پیش از آنان هلاک کردیم که از آنان نیرومندتر بودند، و [با نیرویشان] به سرزمین ها رفتند [و آنها را فتح کردند]، آیا توانستند [از عذاب و هلاکت] گریزگاهی بیابند؟ (۳۶)
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكْرَىٰ لِمَنْ كَانَ لَهُ قَلْبٌ أَوْ أَلْقَى السَّمْعَ وَهُوَ شَهِيدٌ
بی تردید در سرگذشت پیشینیان مایه پند و عبرتی است برای کسی که نیروی تعقّل دارد، یا با تأمل و دقت [به سرگذشت ها] گوش فرا می دهد در حالی که حاضر به شنیدن و فراگیری شنیده های خود باشد. (۳۷)
وَلَقَدْ خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ وَمَا مَسَّنَا مِنْ لُغُوبٍ
همانا ما آسمان ها و زمین و آنچه را میان آنهاست در شش روز آفریدیم، و هیچ رنج و درماندگی به ما نرسید. (۳۸)
فَاصْبِرْ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَسَبِّـحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوبِ
پس [بر آزار مشرکان] شکیبا باش، و پیش از طلوع خورشید و پیش از غروب آن پروردگارت را همراه با سپاس و ستایش تسبیح گوی، (۳۹)
وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَأَدْبَارَ السُّجُودِ
و در پاره ای از شب و نیز پس از سجده ها خدا را تسبیح گوی، (۴۰)
وَاسْتَمِعْ يَوْمَ يُنَادِ الْمُنَادِ مِنْ مَكَانٍ قَرِيبٍ
و گوش فرا ده روزی که ندا دهنده از جایی نزدیک ندا می دهد. (۴۱)
يَوْمَ يَسْمَعُونَ الصَّيْحَةَ بِالْحَقِّ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْخُرُوجِ
روزی که [همگان] صیحه و فریاد را به حق و درستی می شنوند [و] آن روز، روز بیرون آمدن [از قبرها] ست. (۴۲)
إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي وَنُمِيتُ وَإِلَيْنَا الْمَصِيرُ
بی تردید ماییم که زنده می کنیم و می میرانیم، و بازگشت به سوی ماست. (۴۳)
يَوْمَ تَشَقَّقُ الْأَرْضُ عَنْهُمْ سِرَاعًا ۚ ذَٰلِكَ حَشْرٌ عَلَيْنَا يَسِيرٌ
روزی که زمین از [روی اجساد] آنان در حالی که [از قبرها بیرون آمده] شتابان [به سوی ندا کننده خود بروند] بشکافد؛ این گردآوردنشان از گورها [وحاضر کردنشان در قیامت] بر ما آسان است. (۴۴)
نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَقُولُونَ ۖ وَمَا أَنْتَ عَلَيْهِمْ بِجَبَّارٍ ۖ فَذَكِّرْ بِالْقُرْآنِ مَنْ يَخَافُ وَعِيدِ
ما به آنچه [دشمنان لجوج بر ضد حقایق] می گویند، داناتریم و تو را بر آنان تسلطی نیست [که به قبول حقایق وادارشان کنی]؛ پس به وسیله قرآن کسانی را که از تهدید من می ترسند، بیم ده. (۴۵)